Friday, August 27, 2021

जहुरिया_ डोमेन्द्र नेताम

 मोर जहुरिया तय खाले किरिया मया हे अडबड़ भारी।

झन झोड़बे तय पिरीत के बंधना मोर मयारु संगवारी ।‌। 


तोर आंखी के कजरा खोपा के गजरा झुले तोर कान के बाली ।

तोर नाक के नथनी मांथ के बिंदिया तोर कोयली कस गुरतुर बोली।।


मोर जहुरिया मोर पिरोहिल आज दिखथस सुग्घर बढिया ।

झुठ लबारी नि मरों कहांथो सिरतोन म मैं हर हवाव वो छत्तीसगढ़िया।।


मन मयारु मने नही देखे बर तोला अंतश ह मारे हिलोर ।

मोर जहुरिया मोर पिरोहिल हावय तोर मोर मया के शोर ।।

 

संग संगवारी मन देवय ताना होगे मेहां बदनाम ।

तोर मया पिरीत म मेहां हर लिखेव कविता तोर नाम ।।


                          डोमेन्द्र नेताम 

                   मुण्डाटोला डौण्डीलोहारा 

                  जिला -बालोद (छ.ग.)

 

 

Thursday, August 19, 2021

भरे सावन ह सुखा परगें_ डोमेन्द्र नेताम

                


। *भरे सावन ह सुखा परगें*।।

भरे सावन ह सुखा परगें ,

       नई बरसें तय सिटीर छाटर

तोर अगोरा म सब किसान बैईठे हे,

 धर के बियासी बर बईला नागर।।

कतिक करबे तय अब मनमानी,      

       ठेलहा होगें अब जम्मो के जागर ।

नदिया,नरवा,तरिया,डबरी ,

 निहारथे आस लगा के देखथे सागर ।।

पिरोहिल ह मयारु बर ,

  सज संवर के लगा के बैईठे काजर ।

खेत-खार ह सुना होगें करमा अऊ ददरिया,

  अब तो तय बरस जारे करिया बादर ।।

 मेंचका ,टेटका ,सांप, झिंगुरा मन,

     देखाथे गाऐ बर गीत मल्हार संग मांदर ।

अब सब के मन ल फरिहर कर दे,

         बरसत आजा सुग्घर रोटहा पातर ।।   


                 डोमेन्द्र नेताम                       

          मुण्डाटोला डौण्डीलोहारा 

              जिला-बालोद (छ.ग.)

Thursday, August 12, 2021

अशोक शर्मा_बुंद गिरय नही पानी

 साहित्य संगम संस्थान छत्तीसगढ़ इकाई

दिनाँक:25-7-21

विषयः स्वतंत्र

विधाः छत्तीसगढ़ी कविता

बुंद गिरय नही पानी

 सुख्खा बादर भर आथे।1

दाँत निपोरे देखय खेत खार

बारी बखरी होगे बंटा धार

लागत है पानी हा घलो 

कोनों डाहर उड़डिया भगाके।2

जावव कोनो लाव बलाके

कोन डाहर चल दिस रिसाके

देके टिकिया लानव बलाके।3

भरत लाल गौतम _शिव शंकर भोला,

 

शिव शंकर भोला, 

मे बंदत हो तोला,, 

मोर खाली हे झोला, 

ते भर दे ओला,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,शिव 


अन्तरयामी हावस ते, 

अवघटदानी हावस ते,, 

सब देवता ले बडखा अस ते, 

येही समझ के बंदत हावव मे,, 

अब तोर उपर हे भरोसा मोला,,,,,,शिव


देवता हो चाहे हो राक्षस, 

सबके गोहार ते सुनथस ,, 

जॆहर मागथे जइसन ,

ते देथस ओला वईसन,,

जाये के बेरा देथस स्वर्ग ओला ,,,,,,शिव


स्वरचित मौलिक रचना

भरत लाल गौतम 

रायगढ, छत्तीसगढ़ 


संजय देवांगन सिमगा_"" किसानी के दिन ""


""   किसानी के दिन   ""


कांदा कुशा के दिन लहुट गे 

केकरा मेंचका चंढगे मेड पार 

खलबल खलबल चिखला गाये 

गॉव गली अंगना दुवार.....

अ र र र र त् त् त्  छो के परत हे  गुहार........ 


नांगर बईला धरे जहुरिया 

बटकी म बासी बोहे बहुरिया 

चलय गॉव गली ले खेत खार 

मुठा मा पड़की हाथ म तुतारी

आगु मा बईला पाछु मा संगवारी 

करत हे दुनो जीवन बर  उपकार 

अ र र र र त् त् त् छो के परत हे गुहार...... 


हरियर हरियर दिखत हे रूख राई 

मन ला मचलावत हवय पुरवाई 

खल -खल खल -खल नदिया बाढे 

रिमझिम गिरे बरसा के फूहार 

अ र र र र त् त् त् त् छो के परत हे गुहार......... 


झिमिर झिमिर बरसत हे पानी 

अाग लगावय मद मस्त जवानी 

तन मन हा मारत हे हिलोर 

गावय मस्त पवन मल्हार 

अ र र र र त् त् त् त् छो के परत हे गुहार......


          संजय देवांगन सिमगा 

        रायपुर छत्तीसगढ़

मनोज कुमार चन्द्रवंशी "मौन" _हमर छत्‍तीसगढ़

हमर छत्तीसगढ़


छत्तीसगढ़  ला   धान  कटोरा  कइथे,

छत्तीसगढ़ मे धन -धान्य हा उपजथे।

नदिया नरवा हा खरल खरल बोहाथे,

छत्तीसगढ़ संस्कृति हा अजब सुहाथे॥


छत्तीसगढ़    महतारी   के   कोरा  में,

आनी बानी  के तीज त्यौहार  मनाथे।

देवी,  देवता, धामी के  गुन ला गाके,

अपन जीवन  के मनौती ला मानाथे॥


सब्बो  संगवारी  जानो, समझो गुनो,

छत्तीसगढ़ महतारी बहुतेच महान हे। 

जेखर  कोरा  मा  हम खेलेन कूदेन,

फिर हमन  मन काबर अनजान हैं॥


छत्तीसगढ़ महतारी के गुन ला गावो,

जेखर महिमा हा दुनिया में भारी है।

हर खुशी ला अपन अंतस में समेटे,

हमन  के   छत्तीसगढ़  महतारी हा॥


                   रचना 

          स्वरचित एवं मौलिक 

     मनोज कुमार चन्द्रवंशी "मौन" 

बेलगवाँ जिला अनूपपुर मध्यप्रदेश

सुधा शर्मा_*काय संग ले जाबे रे*

*काय संग ले जाबे रे*


बेरा के गाड़ी ह चलत हे,बइठ कहाँ तक जाबे रे।

काला धरबे, काला छड़बे, 

काय संग ले जाबे रे।


माटी के दीया ह बरत हे,

भुइयाँ अगास नापे हे।

कोन डहर ए, कोन सहर ए, गाँव कोन ल ताके हे।


कोन बसर मा हवे बसेरा,

कोन म छँइहा हाबे रे।।


काला धरबे-----



बिगर टिकट के करे सवारी ,

बनके जग लछवंता जी।

बिसर बिसर के असली ठीहा ,

बने हवस कुल कंता जी।।


कोन ठउर मा गाड़ी रुकही ,

कइसे गम ला पाबे रे।।


काला धरबे----


सुख -दुख के सावन- भादो ,

गरज -बरस देखावत हे।

अंझा- मंझा परे दुवारी,

खोर- गली ल साजत हे।



कती बरोड़ा आही जम के, 

किंजर भँउरी खाबे  रे।


काला धरबे--

स्वरचित 

सुधा शर्मा


राजिम छत्तीसगढ

Wednesday, August 11, 2021

भुनेश्‍वरी साहू_छत्‍तीसगढ़ के बोरे बासी

                

  ```छत्तीसगढ के बोरे बासी,,,


छत्तीसगढ़ के बोरे बासी,

खाए ले नई लागे थकासी।

संग मा गोंदली चना के साग,

 कटोरी मां बिजौरी राख।।


नून  एखर निच्‍चट संगवारी, 

सिरतोन मा नई मारो लबारी।

लोग लइका सियान खाथे सबो,

बटकी बरतन मा एला परोसो।।


बड़ ठूसठूस ले हे गा,

मोर गउटनिन सियनहिन नानी।

उहू हा खाथे बोरे बासी,

संग मा नून अउ चटनी के चानी।।


मोर खेतखार के कमैया, 

भोंभरा घाम ले अवईया। 

ताते- तात भात खाए मा, 

मइनखे ला लागथे रोवासी।

उहू मांगथे हकन के,

दे मोला एक बटकी बासी।।


रुक रे सरदहा तै झन खा, 

तोर बर बासी निच्‍चट जोगासी।

अब्‍बड़ मिठाथे गा,

 मोर छत्तीसगढ़ के बोरे बासी।।


मोबाईल मा थोरकिन गुगल म खोजव,

हमर बासी के गुन गाथे अमरिकनवासी।

ता आवव गोठियाव झन लजावव,

जम्‍मों झन ला सुहाथे बोरे बासी।।

    

जहुरिया_ डोमेन्द्र नेताम

 मोर जहुरिया तय खाले किरिया मया हे अडबड़ भारी। झन झोड़बे तय पिरीत के बंधना मोर मयारु संगवारी ।‌।  तोर आंखी के कजरा खोपा के गजरा झुले तोर कान...