```छत्तीसगढ के बोरे बासी,,,
छत्तीसगढ़ के बोरे बासी,
खाए ले नई लागे थकासी।
संग मा गोंदली चना के साग,
कटोरी मां बिजौरी राख।।
नून एखर निच्चट संगवारी,
सिरतोन मा नई मारो लबारी।
लोग लइका सियान खाथे सबो,
बटकी बरतन मा एला परोसो।।
बड़ ठूसठूस ले हे गा,
मोर गउटनिन सियनहिन नानी।
उहू हा खाथे बोरे बासी,
संग मा नून अउ चटनी के चानी।।
मोर खेतखार के कमैया,
भोंभरा घाम ले अवईया।
ताते- तात भात खाए मा,
मइनखे ला लागथे रोवासी।
उहू मांगथे हकन के,
दे मोला एक बटकी बासी।।
रुक रे सरदहा तै झन खा,
तोर बर बासी निच्चट जोगासी।
अब्बड़ मिठाथे गा,
मोर छत्तीसगढ़ के बोरे बासी।।
मोबाईल मा थोरकिन गुगल म खोजव,
हमर बासी के गुन गाथे अमरिकनवासी।
ता आवव गोठियाव झन लजावव,
जम्मों झन ला सुहाथे बोरे बासी।।
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