*काय संग ले जाबे रे*
बेरा के गाड़ी ह चलत हे,बइठ कहाँ तक जाबे रे।
काला धरबे, काला छड़बे,
काय संग ले जाबे रे।
माटी के दीया ह बरत हे,
भुइयाँ अगास नापे हे।
कोन डहर ए, कोन सहर ए, गाँव कोन ल ताके हे।
कोन बसर मा हवे बसेरा,
कोन म छँइहा हाबे रे।।
काला धरबे-----
बिगर टिकट के करे सवारी ,
बनके जग लछवंता जी।
बिसर बिसर के असली ठीहा ,
बने हवस कुल कंता जी।।
कोन ठउर मा गाड़ी रुकही ,
कइसे गम ला पाबे रे।।
काला धरबे----
सुख -दुख के सावन- भादो ,
गरज -बरस देखावत हे।
अंझा- मंझा परे दुवारी,
खोर- गली ल साजत हे।
कती बरोड़ा आही जम के,
किंजर भँउरी खाबे रे।
काला धरबे--
स्वरचित
सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ
बढिया
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