Thursday, August 12, 2021

सुधा शर्मा_*काय संग ले जाबे रे*

*काय संग ले जाबे रे*


बेरा के गाड़ी ह चलत हे,बइठ कहाँ तक जाबे रे।

काला धरबे, काला छड़बे, 

काय संग ले जाबे रे।


माटी के दीया ह बरत हे,

भुइयाँ अगास नापे हे।

कोन डहर ए, कोन सहर ए, गाँव कोन ल ताके हे।


कोन बसर मा हवे बसेरा,

कोन म छँइहा हाबे रे।।


काला धरबे-----



बिगर टिकट के करे सवारी ,

बनके जग लछवंता जी।

बिसर बिसर के असली ठीहा ,

बने हवस कुल कंता जी।।


कोन ठउर मा गाड़ी रुकही ,

कइसे गम ला पाबे रे।।


काला धरबे----


सुख -दुख के सावन- भादो ,

गरज -बरस देखावत हे।

अंझा- मंझा परे दुवारी,

खोर- गली ल साजत हे।



कती बरोड़ा आही जम के, 

किंजर भँउरी खाबे  रे।


काला धरबे--

स्वरचित 

सुधा शर्मा


राजिम छत्तीसगढ

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